उत्तराखंड में बदल रहा मौसम, दिन में गर्मी का एहसास; रात को बढ़ी ठिठुरन
दून समेत आसपास के क्षेत्रों में मौसम शुष्क हो गया है। चटख धूप खिलने से फिर से दिन गर्म हो गए हैं। हालांकि, रात को पारे में गिरावट आने से ठिठुरन महसूस की जा रही है। बीते कुछ दिनों से पर्वतीय क्षेत्रों में बादल मंडराने के साथ ही हल्की वर्षा और बर्फबारी हो रही थी, जिससे दून में पारा तेजी से गिरने लगा था। मौसम विभाग के अनुसार, दीपावली तक दून में मौसम का मिजाज इसी प्रकार का बना रह सकता है। गुरुवार को दून समेत ज्यादातर क्षेत्रों में सुबह से चटख धूप खिली रही। दिन में तपिश बढ़ने के साथ ही चिलचिलाती गर्मी महसूस की गई। हालांकि, सुबह-शाम ठंडक महसूस की जा रही है। बीते कुछ दिनों से चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़ आदि जिलों में आंशिक बादल मंडराने के साथ ही बूंदाबांदी और हल्का हिमपात भी दर्ज किया गया था। जिससे पारे में गिरावट दर्ज की जा रही थी। दो दिन पूर्व दून का अधिकतम तापमान 29 डिग्री सेल्सियस के करीब था, जो कि गुरुवार को 34 डिग्री सेल्सियस के ऊपर पहुंच गया। यह तापमान सामान्य से छह डिग्री सेल्सियस अधिक है। अन्य क्षेत्रों में पारा चार से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक बना हुआ है। वहीं, न्यूनतम तापमान सामान्य या उसके कुछ अधिक है। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह के अनुसार, दून में अगले कुछ दिन मौसम शुष्क बना रह सकता है। प्रदेश में भी पहाड़ से मैदान तक चटख धूप खिलने के आसार हैं। अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक बना रह सकता है। फिलहाल कहीं वर्षा के आसार नहीं हैं।
ग्लोबल वार्मिंग से खिसक रहा पिंडारी ग्लेशियर, पर्यावरण प्रेमी चिंतित
ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर तेजी से पीछे खिसकते जा रहे हैं। उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अनुसार गंगोत्री ग्लेशियर 1989 से 2020 के बीच गोमुख क्षेत्र में 455 मीटर पीछे खिसक गया है। वहीं, बागेश्वर जिले में पिंडारी ग्लेशियर 60 वर्षों में करीब आधा किमी पीछे खिसका है। ग्लेशियरों से बनने वाली छोटी झीलों का आकार भी बीते वर्षों में बढ़ गया है। जिसे लेकर पर्यावरणविदों के साथ ही पर्वतारोही भी चिंतित हैं। बागेश्वर जिले में स्थित प्रसिद्ध पिंडारी ग्लेशियर की खोज कुमाऊं कमिश्नर रहे सर जार्ज विलियम ट्रेल ने 1830 में की थी। ग्लोबल वार्मिंग का असर अब पिंडारी ग्लेशियर में भी देखने को मिल रहा है। पर्वतारोही योगेश परिहार बताते हैं कि वर्ष 2013 की आपदा में ध्वस्त ट्रेकिंग रूट अभी ठीक नहीं है। फुरकिया से पिंडारी के बीच में कई रास्ते गायब हो गए हैं। ग्लेशियरों के पिघलने व खिसकने से एक हिमालय क्षेत्र में गर्मी का असर अधिक महसूस होगा, वहीं जल स्रोतों पर संकट खड़ा हो सकता हैं।
60 वर्ष के बाद पिंडारी गए पद्ममश्री अनूप साह ने दिए खतरे के संकेत
राज्य वन्यजीव परिषद के सदस्य 75 वर्षीय पद्मश्री अनूप साह दो दिन पूर्व पिंडारी ग्लेशियर से लौटे हैं। पद्मश्री अनूप बताते हैं कि पिंडारी ग्लेशियर के जीरो प्वाइंट में काफी बदलाव दिख रहा है। इस लिहाज से ग्लेशियर करीब आधा किमी पीछे खिसक गया है।